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उस बेवफ़ा का शहर है और हम हैं दोस्तों / मुनीर नियाज़ी
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उस बेवफ़ा का शहर है और हम हैं दोस्तों|
अश्क-ए-रवाँ की नहर है और हम हैं दोस्तों|
शाम-ए-आलम ढली तो चली दर्द की हवा,
रातों का पिछला पहर है और हम हैं दोस्तों|
आँखों में उड़ रही है लुटी महफ़िलों की धूल,
इब्रत बर-ए-दहर है और हम हैं दोस्तों|
ये अजनबी सी मंज़िलें और रफ़्तगा की याद,
तन्हाइयों का ज़हर है और हम हैं दोस्तों|
[रफ़्तगा=गुज़रे हुए]