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उसकी ज़िद-5 / पवन करण

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किसी बात पर नाराज वह बैठी सामने
मैंने घबराहट छुपाते हुए अपनी उससे पूछा —
कोई ऐसी वैसी बात ।
उसने अपना सिर न में हिला दिया ।

वह देर तक उसी तरह बैठी रही ।
मैं उससे देर तक वजह पूछता रहा ।
मगर मैं जानता था कहीं न कहीं कुछ है ।

काम बन्द करते हुए मैंने उससे पूछा —
अच्छा, चाय पीकर आते हैं ?
वह बैठ कर चुपचाप चाय पीती रही ।
मैंने पूछा — कुछ खाओगी । उसने कहा — नहीं ।

मैं लगातार उसे कुछ न कुछ बताता रहा ।
वह लगातार बिना कुछ बोले अपना सिर हिलाती रही ।
जब असहनीय हो गया मेरे लिए सब,
मैंने खिसियाते हुए कहा — आखिर बात क्या है ?
कुछ तो बोलो, ऐसा कैसे चलेगा ?

अच्छा, मैं चलती हूँ — कहकर वह जाने लगी उठकर ।
अब यह पीड़ादायक था मेरे लिए ।
मैंने रास्ता रोकते हुए उसका उससे जाने को कहा —
पहले बात बताओ तब जाने दूँगा ।

क्या फ़ायदा बताने से — वह बोली —
तुम्हे कुछ याद भी रहता है ।
— मैंने तुमसे कहा था न
आज लाल रंग की शर्ट पहन कर आने के लिए,
उसका क्या हुआ ? भूल गए ?
चलो हटो मुझे जाने दो ।