भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ऊहापोह / महेन्द्र भटनागर

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:28, 8 अगस्त 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महेन्द्र भटनागर |संग्रह=संवर्त / महेन्द्र भटनागर }} प्र...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रश्न —
अविकल स्थिर
अपनी जगह पर।
पंगु
सारी तर्कना,
विखण्डित
कल्पना !
अनिश्चित की शिलाओं तले
रोपित प्रश्न !
सूत्राभाव
पूर्व...उत्तर...सर्वत्र
ठहराव !

यह कश-म-कश
और कब तक ?
विवश मनःस्थिति
और कब तक ?
और कब तक
ओढ़े रहोगे प्रश्न ?
उलझी ऊबट सतह पर।

सब पूर्ववत्
अपनी जगह पर।