भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक देवी / मनोज जैन 'मधुर'

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:42, 14 अप्रैल 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= मनोज जैन 'मधुर' |अनुवादक= |संग्रह= }}...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक देवी
अँजुरी भर
जल समर्पित कर रही है ।

भावना के
विविधवर्णी
पुष्प अर्पित कर रही है ।

हे दयानिधि दीन दुनिया
फूलती
फलती रहे ।

हों सभी निर्भय, निरामय
कामना
पलती रहे ।

दीप श्रद्धा
का तुम्हारी
देहरी पर धर रही है ।

एक देवी
अँजुरी भर
जल समर्पित कर रही है ।

सूर्य जल लो नेह रींधा
सजल
यह धरती रहे ।

धान्य धन से, सम्पदा से
सर्वदा
भरती रहे ।

अर्घ्य दे
उत्साह मन में नित्य नूतन
भर रही है ।

हों सुखी सब
देह धारी
मन सभी के फूल हों ।

प्रार्थना को
मान दे दो
लाख चाहे भूल हों ।

माथ पर रजकण
लगाकर
चाँदनी-सी झर रही है ।

एक देवी
अँजुरी भर
जल समर्पित कर रही है ।