भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

एक प्रेमिका का शोकगीत / प्रदीप जिलवाने

Kavita Kosh से
Pradeep Jilwane (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:55, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रदीप जिलवाने |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <poem> वह आता मेरे द…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


वह आता मेरे दरवाजे तक
फिर फिर लौटकर
दस्तक देता/बजाता ‘कालबेल’
आती मैं जब तक हो जाता ओझल

ढूँढती बाहर सड़क पर
दूर तक फैली विरानी में
चटख रंगों की निरवता में
आकाश की फटी चादर के
ओर-छोर तक
पेड़ों की शाखों पर और
उस पर लटकती
उदास खामोशियों में भी
तलाशती उसे
यहाँ-वहाँ रहस्य की तरह

वह गुजर जाता
मेरे करीब से भी कईं बार
और मैं पहचान भी नहीं पाती
00