भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ओळख्यां अंधारो / नीरज दइया

Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:42, 19 फ़रवरी 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

डरै टाबर
अंधारै सूं
डरतो-डरतो सीखै
नीं डरणो ।

एक दिन
आवै ऐड़ो
धोळै दोफारां
टाबर ओळख लेवै
उजास में अंधारो ।

ओळख्यां अंधारो
टाबर-टाबर नीं रैवै
दबण लागै
भार सूं
करण लागै जुद्ध
अंधारै री मार सूं ।