भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कदै बणू धरती/कदै अकास / वासु आचार्य

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:06, 28 फ़रवरी 2015 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

म्हारै आसै पासै
दळदळ है तो
कळझळ भी है
सूल अर कांटा है तो
फूल अर फळ भी है

कैयौ धरती अकास नै

म्हारै आसैपासै
नीं तो हड़बड़ाट है
नीं कीं उच्चाट है
अेक आखूट लाम्बी स्यान्ति
नीं कोई सुवाद
नीं कोई सुपनो
अेक अनोखो-अणदीठ आणन्द

बौल्यौ पाछौ धरती सूं
पडूत्तर मांय अकास

अर अठीनै म्हैं
मौव अर निरमौव रै
मईन जाळै बिचाळै
कदै बणू धरती
कदै अकास