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कर इरादा चल पड़ें तो पत्थरें भी कन में हो / अवधेश्वर प्रसाद सिंह
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कर इरादा चल पड़ें तो पत्थरें भी कन में हो।
मोड़ देंगें हम हवा को हौसला गर मन में हो।।
जंगलों में शेर से पंजा लड़ा सकता हूँ मैं।
जोर कितना आ बताऊँ फैसला यह रन में हो।।
लेखनी चलती रहेगी रात दिन यूँ ही सभी की।
शब्द के बौछार होगें चेतना हर जन में हो।।
है नहीं हिम्मत किसी में रोक ले रस्ता मेरा।
दूरियाँ भी कम पड़ेगी तंदुरुस्ती तन में हो।।
कर भला तो हो भला यह बात कहने वालों से।
है यही विनती हमारी मान भी जन-जन में हो।।
देश हिंदुस्तान अपना विश्व के इतिहास में।
शांति के इस दूत का जयगान भी कनकन में हो।।