भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कर्ज़ की बातें लिखी थीं डायरी की दरमियाँ / ज्ञान प्रकाश विवेक
Kavita Kosh से
द्विजेन्द्र द्विज (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:11, 14 सितम्बर 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्ञान प्रकाश विवेक |संग्रह=आंखों में आसमान / ज्ञ…)
क़र्ज़ की बातें लिखी थीं डायरी के दरमियाँ
खोलता कैसे उसे मैं हर किसी के दरमियाँ
लाश शायद ये उसी मल्लाह की है दोस्तो
ज़िन्दगी ले कर गया था जो नदी के दरमियाँ
ख़ुद से मिलने के लिए अब वक़्त तय करना पड़ा
दूरियाँ इतनी बढ़ी हैं आदमी के दरमियाँ
क़हक़हों के पत्थरों पर आँसुओं का जल चढ़ा
ये भी तेरी वंदना होगी, हँसी के दरमियाँ
इक मदारी की तरह मैं खेल दिखलाता रहा
साँस की रस्सी पे चढ़कर ज़िन्दगी के दरमियाँ