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कल बहुत दुश्वार था जिन के लिए / जावेद क़मर
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कल बहुत दुश्वार था जिन के लिए।
जब लिए बदले तो गिन-गिन के लिए।
ज़िन्दगी राह-ए-ख़ुदा में हो बसर।
बस यही बेहतर है मोमिन के लिए।
ज़िन्दगी भर के लिए आ जाए चैन।
काश वह आ जाए इक दिन के लिए।
हो गये ज़ाहिर ज़माने के फ़रेब।
जाइज़े जब हम ने बातिन के लिए।
देखने वाला नहीं कोई तुम्हें।
सज रहे हो आज तुम किन के लिए।
कोई मज़्लूमों का अब साथी नहीं।
कौन खोले लब भला इन के लिए।
बहर-ए-ग़म फज़्ल-ए-ख़ुदा से ऐ 'क़मर' ।
कर रहा हूँ पार दो तिनके लिए।