भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता की जगह / कात्यायनी

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:20, 15 नवम्बर 2008 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कात्यायनी |संग्रह= }} <Poem> एक झील है मेरे मन में हिल...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक झील है मेरे मन में
हिलते भूरे मटमैले पानी वाली ।
वहाँ कोने पर
कुछ घास और लताएँ हैं
तल के कीचड़ से उठकर
पानी की सतह पर पसरी हुईं ।
वहीं कुछ जल-भौरे
लगातार चक्कर काटते रहते हैं
उद्विग्न,
कहीं नहीं रुकते हैं ।
वहीं, बस थोड़ी-सी
जगह है कविताओं की ।
शेष विस्तार पर तो
बहुत कुछ सरगर्मियाँ हैं
बाहर की दुनिया की
दूसरी सरगर्मियों जैसी ।