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कविता जन्म लेती है / प्रेमलता त्रिपाठी

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महक मकरंद दे रसधार कविता जन्म लेती है।
भ्रमर की जब सुनें गुंजार कविता जन्म लेती है।

लगे जब बौर अमराई कहीं कोयल कुहुक जाये,
मगन मन जब उठे झंकार कविता जन्म लेती है।

घटायें दे रही संदेश घन-घन नाद मन भावन,
झड़ी बरखा लगी बौछार कविता जन्म लेती है।

बिखेरे राह में काँटे विटप जब फूल वारे तब,
धरा करती प्रणय श्रंृगार कविता जन्म लेती है।

उमंगें उठ रही मनमें सपूतों के समर्पण से,
जगे जब देश हित वह प्यार कविता जन्म लेती है।

खड़े दिन रात सीमा पर बहन की लाज प्रीतम वह,
खनक कंगन भरे उद्गार कविता जन्म लेती है।

कहीं कशमीर रोता है कहीं हलधर दुखी होते,
हृदय में प्रेम ले आकार कविता जन्म लेती है।