भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता सूई नहीं / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
Dkspoet (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:20, 1 जनवरी 2017 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता सूई नहीं
जो पूरे मकान में
लालटेन लेकर ढूँढें

यह मिट्टी
अलग - अलग रंग में
लोगों को जोड़ती है

आग में तपे
तो ईंट
पानी में गले
तो गारा

और काटने पर उतरे
तो आरा