भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

काम चले अमरीका का / हबीब जालिब

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:30, 14 मार्च 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नाम चले हरनामदास का काम चले अमरीका का
मूरख इस कोशिश में हैं सूरज न ढले अमरीका का

निर्धन की आँखों में आँसू आज भी है और कल भी थे
बिरला के घर दीवाली है तेल जले अमरीका का

दुनिया भर के मज़लूमों ने भेद ये सारा जान लिया
आज है डेरा ज़रदारों के साए तले अमरीका का

काम है उसका सौदेबाज़ी सारा ज़माना जाने है
इसीलिए तो मुझको प्यारे नाम खले अमरीका का

ग़ैर के बलबूते पर जीना मर्दों वाली बात नहीं
बात तो जब है ऐ ‘जालिब’ एहसान तले अमरीका का