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कारीगर / शहंशाह आलम

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तुम्हारे ही हुनरमंद हाथ
हमें दिखते हैं सपनों में
हज़ार-हज़ार वर्षों से

तुम्हारी ही नफासत
तुम्हारा ही समर्पण
तुम्हारी ही समझदारी
तुम्हारी ही कला
तुम्हारी ही चिंता
झलकती है
इस रहस्यलोक में

शहर के शहर गिरते हैं
फिर तुम्हारे ही हाथों
होते हैं खड़े रंगों से सजे

तुम्हारे ही हाथों बने रास्ते हैं
यहां से वहां सार्थक दूब से भरे

हमें पता है
तुम न कोई पैग़म्बर हो
न कोई देवता
न सप्तर्षि
न कोई जादूगर-वादूगर
बिलकुल हमारे पिता की तरह हो

तुम हो इसीलिए
ख़्वाबे-दरो-दीवार है
और यह पृथ्वी है
घरों से भरी हुई।