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कुछ ख़याल आइनों का तो कर / नवीन सी. चतुर्वेदी

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कुछ ख़याल आइनों का तो कर
झूठ चलता नहीं उम्र भर

हाय रे! बेबसी का सफ़र
बह रहे हैं नदी में शजर

जाने किस की लगी है नज़र
राह आती नहीं राह पर

सीढ़ियों पर बिछी है हयात
ऐ ख़ुशी हौले-हौले उतर

किस लिये माँगिए आसमाँ
ये फ़लक तो है ख़ुद आँख भर

हाँ तू दरपन है और मैं हूँ आब
क्या गिनाऊँ अब अपने हुनर

बस यही है ख़ज़ाना मिरा
कुछ लहू, कुछ अना, कुछ शरर

थोड़ा ग़म भी कमा लो ‘नवीन’
दर्द मिलता नहीं ब्याज पर