भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ दोहे / हस्तीमल 'हस्ती'

Kavita Kosh से
Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:17, 17 जून 2020 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

1.
पार उतर जाए कुशल किसकी इतनी धाक
डूबे अखियाँ झील में बड़े - बड़े तैराक

2.
जाने किससे है बनी, प्रीत नाम की डोर
सह जाती है बावरी, दुनिया भर का ज़ोर

3.
होता बिलकुल सामने प्रीत नाम का गाँव
थक जाते फिर भी बहुत राहगीर के पाँव

4.
फीकी है हर चूनरी, फीका हर बन्देज
जो रंगता है रूप को, वो असली रंगरेज़

5.
तन बुनता है चदरिया, मन बुनता है पीर
एक जुलाहे सी मिली, शायर को तक़दीर

6.
बेशक़ मुझको तौल तू, कहाँ मुझे इनक़ार
पहले अपने बाट तो, जाँच-परख ले यार