भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कुछ भी नहीं किया / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 02:36, 22 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कुछ भी नहीं किया
केवल दिया, दिया, दिया 
जीवन को
सपनों की छवि से
भर लिया,
अंतर की ज्वाला में
जला-बुझा किया
टेरता पपीहा-सा
'पिया, पिया, पिया' 

चन्दन-सा तन-प्राण
घिसता रहा,
गौरव, गति, गंध, गान
रिसता रहा,
एक दिया जला
दूसरा बुझा लिया

खंडित विधु-लेखा मैं
पाँव के तले,
पानी की रेखा ज्यों
बने, मिट चले 
पंछी ज्यों पंखहीन,
ऐसे ही जिया
कुछ भी नहीं किया
केवल दिया, दिया, दिया