भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

केवल फूल भला लगता है तेरा धोखा है प्यारे / प्राण शर्मा

Kavita Kosh से
Shrddha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:58, 4 अगस्त 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्राण शर्मा }} Category:गज़ल <poem> केवल फूल भला लगता है ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

केवल फूल भला लगता है तेरा धोखा है प्यारे
एक तराशा पत्थर भी तो सुन्दर होता है प्यारे

यह एक बार उतर जाए तो लोगों का उपहास बने
मर्यादा जैसे नारी के तन का कपड़ा है प्यारे

सब कुछ ही धुँधला दिखता है तुझको इस सुन्दर जग में
लगता है तेरी आँखों मैं कुछ कुछ कचरा है प्यारे

दुख घेरे रहता है मन को सिर्फ़ इसी का रोना है
वर्ना हर एक के जीवन में सब कुछ अच्छा है प्यारे

रंग नया है ढंग नया है सोच नई और बात नई
तू भी बदल अब तो यह सारा आलम बदला है प्यारे

हर बाज़ार भरा देखा है आते जाते लोगों से
फिर भी हर एक का कहना है खाली बटुआ है प्यारे