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कोचिंग क्लास से लौटते हुए / दिनेश कुमार शुक्ल

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कोचिंग क्लास से लौटते हुए
योगमाया मन्दिर के पास
रोज बैठी मिलती है मालिन
थोड़े-से
कुम्हलाए अधगुँथे फूल
दोने, मालाएँ .

योगमाया मन्दिर के पास
रोज बैठी मिलती है
गाय अकेली
आँखों से आँसू बहाती
उठने में असमर्थ

रोज कोचिंग पढ़कर
लौटता लड़का
पीठ पर लादे किताबों का पहाड़
देखता है थकी आँखों से
गाय को, फूलों को, मालिन को
कठिन है प्रतियोगिता
मेडिकल की

अभी दो साल पहले
जब वह था नौवीं क्लास में
तो गाय खिलन्दड़ स्वभाव की
वात्सल्य भरी आँखों से
दुनिया को देखती
पगुराती रहती थी
मालिन
अभी दो साल पहले तक
पहनती थी चूड़ियाँ
माँग में भरती थी सिन्दूर
तब उसके पास
कई तरह के और खूब-खूब
होते थे फूल

योगमाया मन्दिर की गली में
हर दुपहर
पीठ पर लादे पहाड़
लड़खड़ता लौटता है समय
ज्वार के बाद
वापस लौटते समुद्र-सा ।