भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है / अंजुम सलीमी

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:23, 20 फ़रवरी 2013 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अंजुम सलीमी |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem> ख़...' के साथ नया पन्ना बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ख़ाक छानी न किसी दश्त में वहशत की है
मैं ने इक शख़्स से उज्रत पे मोहब्बत की है

ख़ुद को धुत्कार दिया मैं ने तो इस दुनिया ने
मेरी औक़ात से बढ़ कर मेरी इज़्ज़त की है

जी में आता है मेरी मुझ से मुलाक़ात न हो
बात मिलने की नहीं बात तबीअत की है

अब भी थोड़ी सी मेरे दिल में पड़ी है शायद
ज़र्द सी धूप जो दीवार से रुख़्सत की है

आज जी भर के तुझे देखा तो महसूस हुआ
आँख ने सूरा-ए-यूसुफ़ की तिलावत की है

हाल पूछा है मेरा पोंछे हैं आँसू मेरे
शुक्रिया तुम ने मेरे दर्द में शिरकत की है