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ख़ुशनुमाई देखना ना क़द किसी का देखना / हस्तीमल 'हस्ती'
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Abhishek Amber (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:00, 17 जून 2020 का अवतरण
ख़ुशनुमाई देखना ना क़द किसी का देखना
बात पेड़ों की कभी आए तो साया देखना
ख़ूबियाँ पीतल में भी ले आती है कारीगरी
जौहरी की आँख से हर एक गहना देखना
झूठ के बाज़ार में ऐसा नज़र आता है सच
पत्थरों के बाद जैसे कोई शीशा देखना
ज़िंदगानी इस तरह है आजकल तेरे बग़ैर
फ़ासले से कोई मेला जैसे तन्हा देखना
देखना आसाँ है दुनिया का तमाशा साहिबान
है बहुत मुश्किल मगर अपना तमाशा देखना