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ख़्वाबों की रह-गुज़र से ख़यालों की राह से / 'शकील' ग्वालिअरी

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ख़्वाबों की रह-गुज़र से ख़यालों की राह से
तुझ तक पहुँच रहा हूँ उजालों की राह से

मैं जानता हूँ रास्ता ग़ज़लों के शहर का
आया हूँ चल के ज़ोहरा-जमालों की राह से

मैं रफ़्ता रफ़्ता कर्ब की मंज़िल तक आ गया
दिल का क़रार ढूँडने वालों की राह से

बे-शक्ल कैफियत के हैं चेहरे जुदा जुदा
कुछ बात बन रही है मिसालों की राह से

अफ़सानों की बयाज़ में अफ़साना ही तो है
कुछ मेरा तजि़्करा भी हवालों की राह से

पहुँचा हूँ उस के दर्द की गहराई तक ‘शकील’
उलझे हुए से चंद सवालों की राह से