भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

ख्वाब / रेणु हुसैन

Kavita Kosh से
Mukeshmanas (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:12, 29 जून 2010 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रेणु हुसैन |संग्रह=पानी-प्यार / रेणु हुसैन }} {{KKCatKav…)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


कहीं किसी अंजान डगर पर
चलते-चलते
एक पेड़ की छांव तले
एक शख़्स को बैठे देखा
बोला आओ इधर ज़रा
बेख़ौफ़ चली आओ

उनके पास जो पहुंची मैं
बोला दोनों हाथ उठाकर
लड़की कभी नहीं झुकना
लड़की कभी नहीं दबना
पर अजीब माया है ये
ऐसा सम्मोहन है इसमें
कि हर लड़की झुक जाती है
कि हर लड़की दब जाती है

अजीब शख़्स था
जो मुझे मिला था कहीं अचानक
पर मैं बढ़ती चली गई
आगे बढ़ती चली गई
मैंने देखे फूल हज़ारों
खूब महकते बागीचे
गाते-चहकते पंछी कितने
झर-झर गिरते झरने
दूर-दूर लहराता सागर

आंख खुली तो पाया मैंने
खुद को अपने कमरे में
मेज़ पे रखा था गुलदस्ता
तस्वीरें थीं टंगी हुई
कमरे की दीवारों पर
फूल, बगीचे, पंछी, झरने
दूर-दूर लहराता सागर
सब कुछ कैद था तस्वीरों में

ख़्वाब था शायद, ख़्वाब ही होगा
ख़्वाब में ही आज़ाद है लड़की
ख़्वाब में ही वो झुकती नहीं
ख़्वाब में ही वो दबती नहीं
वरना सचमुच की दुनिया में
हर लड़की झुक जाती है
हर लड़की दब जाती है