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गरीबा / गहुंवारी पांत / पृष्ठ - 4 / नूतन प्रसाद शर्मा

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बिरता रक्षा काम कठिन हे, राहिद उड़ा देत पशु कीट
मनसे घलो चोरा के लेगत, तभे कृषक के जीव हताश।
मंय हा नौकर मन ला भेजत, फसल ला राखंय बन रखवार
चना गंहू के होरा खाथंय, हर्षित होथंय करके हानि।
जब मंय हा विश्वास करे हंव, नौकर बना के राखेंव पास
ओमन मोला धोखा देवत, मोर जिनिस ला चोरा के खात।”
निहू पदी बन कथय गरीबा -”होरा ला नौकर मन खात
खाय जिनिस भर ला खावत हें, एहर कहां बड़े जक घात!
चोरी के तंय दोष ला डारत, लेकिन स्वयं आस तंय चोर
तंय चोराय हस परके हक ला, तब तंय चोर के मुखिया आस।
मोर सलाह मान ले मितवा- सब के हक ला वापिस बांट
सुम्मत के पीढ़ा पर बइठन, एकछत्र हा होय समाप्त।”
धनवा कथय -”रचिस ईश्वर हा, कंगला पूंजीपति के भेद
यदि मिटाय बर कोशिश करथन, तब प्रतिक्रांति के बाजत शंख।
पूर्वजन्म मं पूण्य करे हन, तेकर फल ला पावत आज
हमर धनदोंगानी हा बाढ़त, एकोकन नइ होत अभाव।”
“ईश्वर पर तंय दोष लगा झन, ओकर बर सब एक समान
अपन प्राकृतिक वस्तु ला देथय, करंय सबो झन सम उपयोग।
वाद विचार धर्म धन पूंजी, जतका किसम के होवत भेद
एमन ला मिलजुल के ढकलत, तंहा खतम हो जाथय भेद।”
धनवा अउर गरीबा जानत, दुनिया भर के हर सिद्धान्त
पर ईश्वर के नाम मं झगरत, इही वाद के कथा अगम्य।
जब दिग्भ्रमित करे बर होथय, तंह ईश्वर ला लानत बीच
वाजिब बहस नंदा जाथय तंह, खुद के जिद्द करत हें पूर्ण।
कथय गरीबा -”अब तक राखे, अपन बहस मं छिछला तर्क
मगर ठोस चर्चा अब होवय, जेकर मिलय सुखद परिणाम।
तंय हा जमों वाद के ज्ञाता, जानत हस विकास के रुप
तब ले तोर मं जे शंका हे, मंय मेटत रख तर्क सटीक।
सुम्मत राज लाय बर सोचत, ओकर गुन योग्यता बतात
तंहू कान ला टेंड़िया के सुन, ताकि हृदय से कर स्वीकार।
सब के भावी पूर्ण सुरक्षित, सब झन पांय अपन अधिकार
ना नायक ना खलनायक हे, ऊंच नीच ना धनी गरीब।
जउन व्यवस्था लाने चाहत, समाजवाद ले अउ उत्कृष्ट
मनसे के वर्चस्व हा कायम, पर शोषण करे बर असमर्थ।”
धनवा कथय -”जउन तंय बोलत, ओमां दिखत मोर नुकसान
मंय समाज मं उच्च प्रतिष्ठित, नीचे गिरिहय स्तर मोर।
गांव क्षेत्र मं जतका मनखे, ओमन निहू मोर ले आंय
मोर ले ओमन रुतबा कंसिहंय, मोर अतिक पाहंय पद मान।”
कथय गरीबा -”भ्रम पाले हस, सुम्मत राज हा सुख के राज
जे वर्चस्व तोर अभि हावय, तंय पाबे अउ आसन ऊंच।
वर्तमान मं बनत हेरौठा, सब झन दिहीं हृदय ले मान
तोर पुत्र मनबोध जे हावय, ओकर तक भावी हा साफ।
जेन व्यवस्था मं जीयत हस, ओहर घेर रखे अंधियार
साफ दृष्टि ले तथ्य ला जांचव, कटिहय भ्रम के करिया रंग।”
धनवा कथय -”दिखत हे धोखा, मंय नइ मानंव तोर सलाह
काम पूर्ण तक लालच देवत, तंहने कष्ट दुहू तुम बाद।”
“तंय हा खुद ला धोखा देवत, दुख ला स्वयं निमंत्रण देत
जे मनसे हा रथय अजरहा, दवई ला मानत जहर समान।
सुघर व्यवस्था अस्वीकारत, पर जब परिहय खूब दबाव
कतको ताकत ले तंय लड़बे, लेकिन सुम्मत राज के जीत।
लाहो लेवइ बंद कर तंय हा, निकलत सदा दुखद परिणाम
घालुक रिहिस हठील तउन हा, बद्दी पाइस तन तक दीस।”
उंकर मंझोत पहुंचथय कातिक, बनके उग्र देखावत क्रोध
धनवा के छट्ठी ला गिनथय, सातो पुरखा पानी डार।
कहिथय -”मोरेच बाप तिजऊ हा, खटिस तुम्हर घर मर के भूख
बिपत झेलना मुस्कुल होगे, करिस आत्महत्या खुद हाथ।
मंय हा सेवा तोर करे हंव, पर फल मं अभाव ला पाय
वाकइ तंय गरकट्टा घालुक, मोला देस मरत तकलीफ।
तोर नौकरी छोड़ डरे हंव, तोर ले अब लेहंव प्रतिशोध
खुंटीउजार तोर करिहंव तब, मोर हृदय ठंडक संतोष।”
धनवा हा बोकबोक देखत अउ, कथय गरीबा ला भर क्लान्त-
“सुम्मत राज गांव ले बाहिर, मगर देखात रुप ला रौद्र।
तोर हाल ला मंय जाने बर, इहां आय हंव समझ मितान
पर कातिक ला खुद हा उचका, मोर हइन्ता ला करवात।
तोला जउन जिनिस आवश्यक, मोर पास तंय खत्तम मांग
मगर विरोध मोर झन होवय, एकर याद सदा बर राख।”
धनवा हा लालच देवत हे, ताकि पक्ष होवय मजबूत
मगर गरीबा हा कुछ छरकत, ताकि पूर्ण होवय उद्देश्य।
कथय गरीबा -”जिनिस मांगहूं, लेकिन ओकर बर कुछ टेम
तोर मोर सब भेद मेटावय, एकर किरिया पहिली खान।”
धनसहाय हा उहां ले हटथय मन मं छुपे हे गुस्सा।
कातिक के तेवर ठंडा तंह बोलत हवय गरीबा।
“मुंह फरका गारी बक देना, ए नइ आय क्रांति के राह
शांत बुद्धि – मुंह ला चुप राखव, पहुंच सकत तब निज गंतव्य।
जेकर तिर नइ शक्ति लड़े बर, जेन निकम्मा कायर जीव
अपन दोष ला चुप दोबे बर, आंख लालकर क्रोध देखात।
असली भेद आज फोरत हंव, लेखक लिखिन गलत इतिहास-
देशभक्त मन उग्र लड़ंका, जोश मं उबलय ऊंकर खून।
गोरा मन हा देश ला छोड़ंय, दीन क्रांतिकारी मन धौंस
बम ला पटकिन जीवन ला लिन, तभे देश हो सकिस अजाद।