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गरीबा / धनहा पांत / पृष्ठ - 12 / नूतन प्रसाद शर्मा

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धरमिन हा बिहाव के लाइक, खोजे बर गेंव कमऊ दमांद
जइसे उनुन छुनुन करवइया, निर्मल जल ला पीथय छान।
यद्यपि वर मन मिलंय हजारों, मगर हमर अस कंगला।
बेटी दुख पाहय कहि के नइ देवंव उत्तर कोई।
धर के पसिया मंय हा फिफिया, दउड़ लगाय शहर अउ गांव
धनी दमांद के लालच मं पर, एको कनिक रुकिस नइ पांव।
धरिमन के बिहाव के धुन मं, अइसन काम होय कई बार-
उत्ती डहर भात ला खावंव, बुड़ती करों हाथ ला साफ।
एक जगह मं मिलिस आसरा, सुरु खुरु गेंव छुईखदान
उही मकान गेंव तंह मिल गिस- फंकट नामक एक जवान।
खोजत रेहेंव जउन वर ला मंय, ओहर खड़े हवय मुसकात
अइसे सोच बहुत मन गदगद, भूल गेंव मंय दुख के बात।
ओमन घर बनाय तिनखण्डा, अन धन आय इहें ला खोज
कारोबार देख के चौंकस, मन हा जमगे उंहचे सोज।
फंकट के पालक असरु तिर, मंय हा केहेंव हाथ ला जोड़-
“तोर साथ संबंध जोड़िहंव, अइसे सोच आय हंव दौड़।
जइसे धरमिन हवय बरत अस, दिखब मं फंकट सुंदर रुप
जोड़ तोड़ मं दुनों एक अस, ओमन फबिहंय जस दिन रात।”
असरु गर्व शब्द मं बोलिस- “मंय करिहंव फंकट के ब्याह
पर मन माफिक दाइज लेहंव, तभे काम होहय उत्साह।
फ्रिज कूलर टीवी अउ सोफा, नगदी रुपिया चांदी सोन
हंडा कोपरा पलंग सुपेती, मंय चाहत अतकिच सिरतोन।
यदि दाइज ला पुरो सकत हस, उत्तर देव जेब ला जाँच
यदि इंकार त लहुट जा फट ले, काबर सहस खर्च के आँच?”
सुनते साठ बंधा गे मोर मुंह, नइ दे पाएंव तुरुत जबान
सक ले बाहिर मांग ला देखत, अकबक होगे मोर परान।
पर कुछ बाद लेंव मंय निर्णय- असरु हवय मातबर ठोस
यदि धरमिन ला इहें देत हंव, फूले रहही फूल समान।
मया ला यदि कंगला घर देहंव, ओहर सकय पाट नइ पेट
अपन लगाय बेल ला मंय खुद, हंसिया बन के काटों कार।
धरमिन ला मंय इहें सौंपिहंव, भले खर्च मं मंय भट जांव
पुत्री के भावी बनाय बर, उचित उपाय करों तत्काल।
छाती अंड़ा केहेंव असरु ला- अब तुम देवव आज्ञा।
जतका असन मांग तंय राखत- तेला करिहंव पूरा।
अ्सरु किहिस- “करो तुम जोरा, हम आवत हन पकड़ बरात
सयना सजन के पत ला रखबे, ओमन ला झन होय अघात।”
असरु के घर छोड़ देंव मंय, वापिस मुढ़ीपार आ गेंव
नसना टुटगे जिनिस सकेलत, सब बिखेद ला कतिक लमांव?
ठंउका दिन पहुँचिस समधी हा, मोरेच द्वार बरतिया लैस
ओकर स्वागत करेंव खूब मंय, भर उत्साह नोट ला बार।
बन के निहू बरतिया मन ला, कोंहकोंह जेवन इज्जत देव
तब ले ओमन होले बक दिन, पर अपशब्द ला चुप सुन लेंव।
अब तब भांवर घुमतिस तिसने, घोड़ा अस अंड़ गीस दमांद-
“मोर चढ़े बर फटफटी लानो, वरना मंय नइ करों बिहाव”
पहिली के फुँकाय घर कुरिया, कहाँ पूर्ण होतिस झप मांग
सबो दांत हा टूटगे रीहिस, वरना उही ला देतेंव टोर।
हारे दांव केहेंव मंय केंघरत- “देहूँ बिसा फटफटी एक
लेकिन तुम भांवर ला किंजरो, झन पारो शुभ काम मं बेंग”
बिदा करेंव अपन धरमिन ला, बन के खुद हंसिया बनिहार
अब मंय रहिथंव पर के कुरिया, सदा झांकथंव पर के द्वार।”
पुसऊ के कहना सनम हा सुनथे, एकर बाद देत हे दाद-
“दाई ददा के मन हा होथय, ओकर बिन्द खूब सुख पाय।
यदपि तोर कनिहा हा टुटगे, पर परिणाम मं मिलगे मीठ
धरमिन हा सुख सुविधा पावय, खूब अचक ओकर ससुराल।”
पुसउ तोष- पा उहां ले रेंगिस, तभे गरीबा हा आ गीस
सनम ले कहिथय- “मदद मंय चाहत, फांक उड़ा देबे झन बात।”
सनम हा मुचमुच मुसका बोलिस- “काबर मदद करंव मंय तोर
तोला जब टेड़गी चटकाइस, तंय हा कल्हर करेस हाय हाय।
धनसहाय ला मदद मंगे तंय, पर धनवा कर दिस इंकार
मंय ओकर तोलगी धर चलथंव, तोला कुछुच चीज नइ देंव”
“तइहा के ला बइहा लेगे, ओला तंय सम्मुख झन लान
धनसहाय पर हवय रंज कंस, यदि ओहर अवघट मिल जाय।
ओकर सती गती मंय करहूं, ओकर खटिया दुहूँ उसाल
सपना तक मं मदद करंव नइ, तब साक्षात सदा इंकार।”
“तंय हा बिल्कुल सच बतात हस, धनवा रखत उच्चता भाव
पर ला देख के मुंह मुरकेटत, अंदर रखत घृणा के भाव।
अइसन पेड़ आय धनवा हा, अपन शक्ति पर करत घमंड
ओहर कहिथय- मंय ऊंचा अंव, करथंव बात अकास के साथ।
आंधी पानी कतको आवय, मगर झकोरा ला सहि लेत
कतको बछर के मोर जिन्दगी, अपन मुड़ी ला कार झुकांव!
पर ओहर ए बात ला जानय- जड़ के मदद ले हावय ठाड़
यदि जड़ हा पाती ला तजिहय, पेड़ हा गिर के सत्यानाश।”
एकर बाद सनम हा पूछिस- “काबर आय मोर तिर दौड़
तोला काय जिनिस अभि चहिये, फोर भला तो ओकर नाम?”
“एक दंतारी अगर तोर तिर, मोर पास झप लान निकाल
कोदो फसल दंतारी चलही, ओकर लइक आय हे पाग।
मोर मांग के तुरुत पूर्ति कर, लेहंव तोर मरत तक नाम
दुश्मन तक के मदद ला करथस, तब मंय तोर अभिन्न मितान।”
सनम कथय -“तंय बांस फूल अस, कभू कभू आथस घर मोर
आय हवस तब बिलम टेम तक, अपन हृदय के गोठ निकाल।”