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गांधी (1) / महेन्द्र भटनागर

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मानव-संस्कृति के संस्थापक, नव-आदर्शों के निर्माता,
आने वाली संसृति के तुम निश्चय, जीवन भाग्य-विधाता !

सत्य, अहिंसा की सबल नींव पर, सार्थक निर्मित किया समाज,
देश-देश में नगर-नगर में गूँज उठी नयी-नयी आवाज़ !

सदियों की निष्क्रियता पर तुम कर्मदूत बनकर उदित हुए,
विगत युगों के भौतिक-शृंग तुम्हारी धारा से विजित हुए !

नैतिक-हीना सघन निशा में धु्रव दिया तुम्हीं ने सतत प्रकाश,
घिरे निराशा के घन में तुम ने, भर दी तड़ित-चमक-सी आश !
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