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गांधी / कौशल किशोर

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वे गोडसे-गोडसे रटते हैं
अराध्य देव की तरह नाम जपते हैं
देवता बना पूजते हैं
उसकी देशभक्ति पर उन्हें नाज है

वे सावरकर को बड़ा बनाने में लगे हैं
देश के बड़े रत्न की तरह स्थापित करने में
घिस कर, मांज कर
उसे चमकाने में जुटे हैं
पर दाग है कि छूटता ही नहीं

दरअसल, कोषागार खाली है
वे खोटे सिक्के को
बाजार में चलाना चाहते हैं

ऐसा क्यों होता है कि
उनकी हर कार्यवाही पर
मुझे गांधी याद आते हैं

वे परेशान हैं इस बुड्ढे से
अपने रास्ते से हटाने के लिए मारा उसे
मारना अब भी जारी है
कितना कांट छांट किया कि सबको लगे बौना

पर कमाल का है यह गांधी
हर बार इसका कद ऊंचा हो जाता है
हड्डियाँ मजबूत हो जाती हैं
लाठी और तन जाती है।