भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

गीत-1 / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:56, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा मन डोलता

मेरा मन डोलता है जैसे जल डोलता

जल का जहाज जैसे पल-पल डोलता

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा प्रन टूटता

मेरा प्रन टूटता है जैसे तृन टूटता

तृन का निवास जैसे बन-बन टूटता

मांझी ! न बजाओ बंशी मेरा तन झूमता

मेरा तन झूमता है तेरा तन झूमता

मेरा तन तेरा तन एक बन झूमता ।