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गीत खग / उर्मिल सत्यभूषण

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मैं तुम्हारा गीत खग हूँ
संग पाओगे
मुझे तुम संग पाओगे
खुद को तन्हा जब भी पाओगे
तन्हा तन्हा गीत गाओगे
गीत गुंजाते हुये तुम
मुझको पाओगे
मैं वही चहकूँगा
तुम जहाँ बुलाओगे
मैं तुम्हारा गीत खग हूँ
मैं तुम्हारे साथ रोता
साथ हंसता हूँ
मैं तुम्हारे साथ जीता
साथ मरता हूँ
जंगलों को बीहड़ों को
जब खंगालोगे
संग संग अपने
मुझको उड़ा लोगे
देखना तुम दृग उठाकर
उड़ाता पाओगे
हर जगह उड़ता रहूँगा
जिधर जाओगे
मैं तुम्हारा गीत खग हूँ
किन्तु मुझको छू न पाओगे
कैसे चूमोगे, मुझे दिल से
लगाओगे
भावना का शिखर हूँ
पर्वत मैं सोचो का
कल्पना की शक्ति
से सूरज बुलाओगे
मैं पिघलता जाऊँगा
धार बन हिमशिखर
को बहता ही पाओगे
संग पाओगे मुझे तुम
संग पाओगे
थक गये हों पांव
धीरे से दबा जाता
माथ सहलाता तुम्हारा
लोरियाँ गाता
नींद की आगोश में
तुम डूब जाओगे
जब जगोगे चंवर
फहराते ही पाओगे
जब उदास शामों को
मुझको बुलाओगे
मेरे कांधे पर धरे सर
मुस्कुराओगे
मैं अंधेरो के वो सारे
जाम पी लूंगा
कंठ में रख जहर
अपने होंठ सी लूंगा
तुम उजालों की नदी
में ही नहाओगे
तुम सुधा के जाम
होंठों से लगाओगे
मैं तुम्हारे वास्ते क्या कुछ न कर जाऊँ
एक इंगित पर तुम्हारे झट से मर जाऊँ
तुम पुकारोगे तो फिर जिंदा ही पाओगे
मैं तुम्हारा गीत खग हूँ।