भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
गुज़रेंगे इस चमन से तूफ़ान और कितने / वीरेन्द्र खरे 'अकेला'
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 22:15, 16 नवम्बर 2012 का अवतरण
गुज़रेंगे इस चमन से तूफ़ान और कितने
रूठे रहेंगे हमसे भगवान और कितने
अब हाल पर हमारे तुम हमको छोड़ भी दो
लेते फिरें तुम्हारे अहसान और कितने
नेता, वकील, पंडित, मुल्ला, समाज सेवक
बदलेगा रूप आखि़र शैतान और कितने
हमें तोड़ने की ख़ातिर, हमें लूटने की ख़ातिर
हमसे करेंगे आखि़र पहचान और कितने
आँसू, अभाव, विपदा, आहें, घुटन, हताशा
बदलेगी दिल की पुस्तक उन्वान और कितने
जो सुख नहीं रहे तो दुख भी नहीं रहेंगे
किसी एक घर रूकेंगे मेहमान और कितने
दिन की तरह कोई दिन निकले भी अब ‘अकेला’
होंगे तिमिर के बंदी दिनमान और कितने