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गूंगा / नवनीत पाण्डे

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मैं तोड़ूंगा सन्नाटा
भेदूंगा मौन
भर दूंगा तुम्हारे भीतर
अपने सारे स्वप्न
ओ! महा नगर
चुनौती है तुम्हें
अब नहीं रहने दूंगा तुम्हें गूंगा