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घटनाएँ / नरेन्द्र जैन

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घटनाएँ
घटनाओं की तरह थीं
एकाएक और नींद के बीच
घटती हुईं
आशँका रहित, तोड़ती उम्मीदों को
वे कहीं नहीं थीं
सम्भवत: कहीं न कहीं वे रही हों
ढूँढ़ती हुई विस्फोट का मुहाना ।

पर
लोग नहीं जानते थे
यह वक़्त की बुरी मार थी उन पर
और वे आहत थे कि दुर्घटनाएँ हुईं ।

घटनाएँ
ज़्यादातर दुर्घटनाओं की शक़्ल में
सामने आईं
इन्हें लेकर कोई अपना इतिहास नहीं
लिख सकता था
उन्हें याद करते रहना बहुत
तकलीफ़देह काम था ।

उनमें से जो
जितनी उम्र बिता चुका था
उससे ज़्यादा दुर्घटनाएँ झेल चुका था ।

उस
चरमराती व्यवस्था में नौजवान ख़ुश थे
कि दुर्घटनाएँ हो रही हैं
और
लगातार
सबको एक कर रही हैं ।