भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चरन रज महिमा मैं जानी / मीराबाई

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:59, 22 जून 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मीराबाई }} <poem> चरन रज महिमा मैं जानी। याहि चरनसे ग...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

चरन रज महिमा मैं जानी। याहि चरनसे गंगा प्रगटी।
भगिरथ कुल तारी॥ चरण०॥१॥
याहि चरनसे बिप्र सुदामा। हरि कंचन धाम दिन्ही॥ च०॥२॥
याहि चरनसे अहिल्या उधारी। गौतम घरकी पट्टरानी॥ च०॥३॥
मीराके प्रभु गिरिधर नागर। चरनकमलसे लटपटानी॥ चरण०॥४॥