भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

चाँद बहुत उदास है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

Kavita Kosh से
वीरबाला (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:42, 22 दिसम्बर 2022 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

घिरी घोर कालिमा
चाँद बहुत उदास है
रात पूनों की नहीं
नहीं तनिक उजास है

मानते हो हार क्यों
बन्द सारे द्वार क्यों
कोई द्वार खोल दो
पीर है जो, बोल दो
दीप आस के लिये
हास आसपास है ।

विषाद हवा में घुला
रूप कहाँ धुला-धुला
युगल नयन भरे-भरे
पीर पलकों पर धरे।
दर्द मुझे दान दो
अधरों की प्यास है।