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चिट्ठी है किसी दुखी मन की / कुँअर बेचैन

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बर्तन की यह उठका-पटकी

यह बात-बात पर झल्लाना

चिट्ठी है किसी दुखी मन की।


यह थकी देह पर कर्मभार

इसको खाँसी, उसको बुखार

जितना वेतन, उतना उधार

नन्हें-मुन्नों को गुस्से में

हर बार, मारकार पछताना

चिट्ठी है किसी दुखी मन की।


इतने धंधे। यह क्षीणकाय-

ढोती ही रहती विवश हाय

ख़ुद ही उलझन, खुद ही उपाय

आने पर किसी अतिथि जन के

दुख में भी सहसा हँस जाना

चिट्ठी है किसी दुखी मन की।

-- यह कविता Dr.Bhawna Kunwar द्वारा कविता कोश में डाली गयी है।