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छाँव ले गए महानगर में / कुमार रवींद्र

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अँधियारे में
आओ, इधर खड़े हों हम सब
                     पूजाघर में

सुनो साथियों !
इस कोने में देव नहीं है
यहीं सुरक्षित होगा रहना
संत आएँगे
पूछें भी वे
तब भी उनसे मत कुछ कहना

हम मामूली लोग
उम्र बीती है अपनी गुज़र-बसर में

पूजा का अधिकार उन्हें है
जो देवों के संबंधी है
जनम-जनम से
भूख-प्यास की सीमाओं में
हम बंदी हैं

क्या होगा
अबके संतों का
दिन अपने गुज़रे इस डर में

पूजाघर के इस आँगन में
हाट पुराना
बिके प्रसादी
मालपुए शाहों के हिस्से
हमें मिली बस रोटी आधी

कल्पवृक्ष था
राजा उसकी छाँव ले गए
               महानगर में