भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

छितका कुरिया / चेतन आर्य

Kavita Kosh से
सशुल्क योगदानकर्ता ५ (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:38, 17 अगस्त 2019 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चेतन आर्य |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatChhatt...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मोर गांव के
छितका कुरिया
मोला बड़ सुहाथे
दाई के कोरा मा
सूते कस लगथे,

सूग्घर ले सुग्घर
ओरका एलआर भी सुग्घर
कौन काम के गंगा जल
ये त आय, दाई के चरण बरोबर

एकर अंगना त मोला
चारों धाम कस लगथे।

एकर हांसी अइसन
जइसन, कोइली एक बोली
मोर कुरिया हावय
बहिनी कस भोली

एकर मोर रिश्ता
राखी कस लगथे।

शीतल छंइया, ममता बगराये
धीर-धीर पवन हा
थपकी दे दे सुताये

रात के अंधियारी
महतारी के अंचरा कस लगथे

अंगरी पकड़, एकर मय
पांव-पांव चलेंव
संगवारी कस, संगी
खायें अउ खेलेंव

एकर बंइहां मोला
सावन के झूला कस लगथे

सुख दिख हे, हमार थाती
हम आड़े अमीर हन
ढाई आखर प्रेम गवइया
हम, संत कबीर हन

बोली बानी एकर
साखी शबद कस लगथे।

चारों खूंट माँ बगरे हे
रमायन के चौपाई
बीच अंगना खड़े हावय
मोर, तुलसी दाई

ठांव-ठांव ह मोला
गोकुल-वृंदावन कस लगथे।

इही कुरिया मा
राम-जानकी, रहिन चौदह साल
मय काय बताव संगी
जानत हावव सब हाल

कोना-कोना मा
सीता माई के
पैरी बाजे कस लगथे