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जन्मदिन / शंख घोष

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तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूंगा सिवाय इस वचन के
कि कभी फिर हमारी मुलाक़ात होगी।
मुलाक़ात होगी तुलती के चौरे पर
मुलाक़ात होगी बाँस के पुल पर
सुपारीवन के किनारे मुलाक़ात होगी।
हम घूमेंगे शहर में डामर की टूटी सड़कों पर
गुनगुनी दोपहर या अविश्वासों की रात में
लेकिन हमें घेरे रहेगी अदृश्य
उसी तुलसी अथवा पुल अथवा सुपारी की
बेहद सुन्दर तन्वंगी हवा।
हाथ उठाकर कहेंगे हम
यही तो, इसी तरह
सिर्फ़ दो-एक दुःख बचे रह गए आज भी।
जाते समय निगाहों की चाहत में भिगो लेंगे आँखें
हृदय को दुलराएगा उंगलियों का एक पंख
मानो हमारे सम्मुख कहीं कोई अपघात नहीं
और मृत्यु नहीं दिगन्त तक।
तुम्हारे जन्मदिन पर और क्या दूंगा सिवाय इस वचन के
कि कल से हरेक दिन मेरा जन्मदिन होगा!


मूल बंगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी