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जब ब-तक़रीब-ए-सफ़र यार ने / ग़ालिब

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जब ब-तक़रीब<ref>तैयारी में</ref>-ए-सफ़र यार ने महमिल<ref>ऊँठ की पीठ पर पालकी</ref> बांधा
तपिश-ए-शौक़ ने हर ज़र्रे पे इक दिल बांधा

अहल-ए-बीनिश<ref>नज़र वाले लोग</ref> ने ब हैरत-कदे<ref>हैरानी का कमरा</ref> शोख़ी-ए-नाज़<ref>नख़रे की शरारत</ref>
जौहर-ए-आइना<ref>शीशे का पानी</ref> को तूती-ए-बिस्मिल<ref>ज़ख़्मी तोता</ref> बांधा

यास<ref>निराशा</ref>-ओ-उम्मीद ने यक<ref>एक</ref> अ़रबदा-मैदां<ref>युद्ध का मैदान</ref> मांगा
अ़जज़<ref>कमी</ref>-ए-हिम्मत ने तिलिसम-ए-दिल-ए-साइल<ref>पूछताछ करने वाले दिल का जादू</ref> बांधा

न बंधे तिशनगी-ए-शौक़<ref>उत्साह की प्यास</ref> के मज़मूं<ref>धुन</ref> ग़ालिब
गरचे दिल खोल के दरिया को भी साहिल बांधा

शब्दार्थ
<references/>