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जब सूरज जग जाता है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’

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आँखें मलकर धीरे-धीरे सूरज जब जग जाता है । सिर पर रखकर पाँव अँधेरा चुपके से भग जाता है ।

हौले से मुस्कान बिखेरी पात सुनहरे हो जाते । डाली-डाली फुदक-फुदक कर सारे पंछी हैं गाते ।

थाल भरे मोती ले करके धरती स्वागत करती है । नटखट किरणें वन-उपवन में खूब चौंकड़ी भरती हैं ।

कल-कल बहती हुई नदी में सूरज खूब नहाता है कभी तैरता है लहरों पर डुबकी कभी लगाता है ।
पर्वत –घाटी पार करे

मैदानों में चलता है ।

दिनभर चलकर थक जाता

साँझ हुए फिर ढलता है ।

नींद उतरती आँखों में

फिर सोने चल देता है ।

हमें उजाला दे करके

कभी नहीं कुछ लेता है ।