भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात / साक़िब लखनवी
Kavita Kosh से
चंद्र मौलेश्वर (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 23:28, 9 सितम्बर 2009 का अवतरण (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=साक़िब लखनवी }} <poem> ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती ...)
ज़िन्दगी में क्या मुझे मिलती बलाओं से नजात।
जो दुआएँ कीं, वो सब तेरी निगहबाँ हो गईं॥
कम न समझो दहर में सरमाय-ए-अरबाबे-ग़म।
चार बूंदें आँसुओं की, बढ़के तूफ़ाँ हो गईं॥