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जिनगी के बेताल / बुधराम यादव

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एक सवाल के जुवाब पाके
अउ फेर करय सवाल,
विक्रम के वो खाँध म बइठे
जिनगी के बेताल।

पूछय विक्रम भला बता तो
अइसन काबर होथे?
अंधवा जुग म आँखी वाला
जब देखव तब रोथें।

सूरुज निकलय पापी के घर
दर -दर मारे फिरय पुन्न घर,
जाँगर टोर नीयत वाले के
काबर हाल बिहाल।

राजा अपन राज धरम ले
करंय नहीं अब न्याव,
काबर के ओमा राजा के
गुन के नइहे छाँव।

लोकतंत्र ह भइस तमासा
बगरिस चारों कती हतासा,
सबके चेहरा चिंता चढ़गे
भीतर हवय हलाल।

राज खज़ाना के धन ले
सेखी मारंय दरबारी,
परजा ऊपर लादत हें अउ
टेक्स के बोझा भारी।

बोट जीत डाकू हत्यारा
बइठे जमो राज दरबारा,
गरीब दुबर हें भूखे -पियासे
नौकर धन्नालाल।

दूध अउ पानी बिलग करइया
अब ओ बरन कहाँ हें?
मिले हावंय सरकार ले ओमन
जेकर लाभ, जिहाँ हे।

बुधिजन अउ बिबेक रखइया
इंकर नइ हें कोनों सुनइया,
बुझावत हें जुग ले थाम्हें
काबर जरत मसाल।