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जीत के परचम / प्रभुदयाल श्रीवास्तव

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मन को लुभा रहे हैं,
ये फूल गुलमोहर के।

ये लाल-लाल लुच-लुच
डालों पर डोलते हैं।
कुछ ध्यान से सुनों तो,
शायद ये बोलते हैं।
स ब लोग देखते हैं,
इनको ठहर-ठहर के।

चुन्ना ने एक अंगुली,
उस और है उठाई।
देखा जो गुलमोहर तो,
चिन्नी भी खिलखिलाई।
मस्ती में धूल झूमे,
नीचे बिखर-बिखर के।

हँसते हैं मुस्कुराते,
ये सूर्य को चिढ़ाते।
आनंद का अंगूठा,
ये धूप को दिखाते।
हैं जीत के ये परचम,
उड़ते फहर-फहर के।