भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जुही में फूल जब आये, हमें भी याद कर लेना / गुलाब खंडेलवाल

Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:56, 23 जुलाई 2011 का अवतरण

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


जुही में फूल जब आये, हमें भी याद कर लेना
नज़र जब ख़ुद से शरमाये, हमें भी याद कर लेना

मुसाफ़िर राह में यों तो हज़ारों साथ चलते हैं
कोई जब दिल को छू जाए, हमें भी याद कर लेना

न होता दिल हमारा तो निशाना तुम किसे करते!
हमींने तीर चलवाए, हमें भी याद कर लेना

कभी आँखों-ही-आँखों बात कुछ हमसे भी होती थी
कभी हम भी तुम्हें भाये, हमें भी याद कर लेना

तुम्हारे प्यार की धुन में खिला तो सौ गुलाब आये
भले ही हम न खिल पाए, हमें भी याद कर लेना