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झूलते प्रसंग / महेश उपाध्याय

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लोहे की ढाल ढह गई
              बह गई
आँगन की चाँदनी—
रह गए सलाखों के रंग
टूटते सितारों के संग

बावड़ी हुई नदियाँ,
मुँह बाँधे खड़ी रहीं
मौन किताबी दुनिया
प्याजी सम्बन्धों की पँखुरियाँ
सूख गईं—
            झूलते प्रसंग
टूटते सितारों के संग ।