भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तब तक / नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:19, 13 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=नीरेन्द्रनाथ चक्रवर्ती |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
रहने दो, तो फिर रहने दो
सारी वेदनाएँ मन जाएँ
स्मृति के गह्वर में झर जाएँ सारी वेदनाएँ।
अगर इस पर भी
मन भर उठे तुम्हारी स्मृति के स्वाद से
दोनों आँखें अगर छलछला आएँ;
यह हृदय अगर
तब भी तुम्हें याद रखे
अगर जीवित रह जाएँ सारे गीत तब तक
तो तुम लौट आना फिर
मैं रहूँगा यहीं
गीतों से ढँक दूँगा सारे हाहाकार।
तब तक रहने दो
पहले मर जाए यह वेदना
सारी तक्लीफ़ें झर जाएँ
स्मृति के गह्वर में।
मूल बांग्ला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी