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तहख़ाने में / शरद बिलौरे

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तहख़ाने में
जितने भी भीतर जा सकता था गया
बाप-दादों के ज़माने की
बहुत-सी चीज़ें वहाँ दफ़न थीं
पिताजी किसी आदमक़द आइने का ज़िक्र करते थे
और माँ लोहे की पेटी में बंद पूजा की पोथियों का
बिना ज़्यादा मेहनत किए
दोनों चीज़ें मिली थीं लेकिन
आइने में सिर्फ़ इतना पारा शेष था
कि बहुत करीब जाकर मुँह देखा जा सके
और पोथियाँ पढ़ने लायक कम
पूजा करने लायक ज़्यादा बची थीं।
कुछ भी लाया नहीं हूँ साथ सोच रहा हूँ
वहाँ बेकार पड़ी बाँस की सीढ़ी ही ले आता
तो कम से कम छोटा भाई
उसके सहारे बिना खपरैल फोड़े छत पर अटकी
अपनी गेंद तो निकाल ही सकता था।