भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तान दिए चन्दवे / रवीन्द्र भ्रमर

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:55, 29 अप्रैल 2020 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रवीन्द्र भ्रमर |अनुवादक= |संग्रह=...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तान दिए चन्दवे
हरियाली के !

केसर से भर दीं रस क्यारियाँ
गुच्छों में झुला दिए फूल
मधुवासित कर दीं फुलवारियाँ

सपने लौटे हैं
वनमाली के !

तान दिए चन्दवे
हरियाली के !

कोकिल के कण्ठ कुहुक-गान दिए
पपीहे को पिया की सुमिरिनी
अपने को झूठे क्षण, मान दिए

घाव क्यों भरें
मेरी आली के !

तान दिए चन्दवे
हरियाली के !

हवा से कहा, बहिना ! धीरे बह
मेरी मँजरियाँ अनमोल
झर न जाएँ, पिछवारे बैठी रह

टिकोरे मिलेंगे
रखवाली के !

तान दिए चन्दवे
हरियाली के !