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ताल में तैरती है / केदारनाथ अग्रवाल

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ताल में
तैरती हैं
अंग के अनंग की
मछलियाँ
गाँव के गले में
पड़ा है
धुआँ
नीलकंठी अभिशाप
आँखों में करकता है।

रचनाकाल: २०-०३-१९७०